खाटूश्याम मंदिर खाटूश्यामजी सीकर - सीकर जिले का खाटूश्यामजी कस्बा बाबा श्याम के मंदिर की वजह से सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है. बाबा श्याम की इस पावन धरा को खाटूधाम के नाम से भी जाना जाता है.
Khatushyam as hare ka sahara
कहते हैं कि बाबा श्याम उन लोगों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं जो लोग सब जगह से निराश हो जाते हैं, हार जाते हैं. इसलिए इन्हें हारे के सहारे के नाम से भी जाना जाता है. प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अपने आराध्य के दरबार में शीश नवाने खाटू नगरी आते हैं.
खाटूश्यामजी कस्बा जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 275 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. रींगस जंक्शन निकटवर्ती रेलवे स्टेशन है जिसकी खाटू से दूरी लगभग 17 किलोमीटर है.
बाबा श्याम का मंदिर कस्बे के बीच में बना हुआ है. मंदिर के दर्शन मात्र से ही मन को बड़ी शान्ति मिलती है. मंदिर में पूजा करने के लिए बड़ा हाल बना हुआ है जिसे जगमोहन के नाम से जाना जाता है. इसकी चारों तरफ की दीवारों पर पौराणिक चित्र बने हुए है.
Why khatushyam temple famous?
गर्भगृह के दरवाजे एवं इसके आसपास की जगह को चाँदी की परत से सजाया हुआ है. गर्भगृह के अन्दर बाबा का शीश स्थित है. शीश को चारों तरफ से सुन्दर फूलों से सजाया जाता है.
मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं के लिए बड़ा सा मैदान है. मंदिर के दाँई तरफ मेला ग्राउंड है. इसी तरफ मंदिर का प्रशासन सँभालने वाली श्याम मंदिर कमेटी का कार्यालय भी स्थित है.
मंदिर से कुछ दूरी पर ही पवित्र श्याम कुंड स्थित है. बाबा श्याम का शीश इसी जगह से प्राप्त हुआ था इस वजह से इस कुंड के पानी को बड़ा पवित्र माना जाता है.
ऐसी मान्यता है कि यह पानी पाताल लोक से आता है और जो भी व्यक्ति इस पानी से स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं.
पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग कुंड बने हुए हैं. कुंड के पास में ही छोटे श्याम मंदिर के साथ-साथ अन्य कई मंदिर बने हुए हैं. मेला ग्राउंड में श्याम बगीची स्थित है.
Places to visit near khatu shyam temple
इस बगीची में श्याम जी के अनन्य भक्त आलूसिंह जी की समाधि बनी हुई है. कहा जाता है कि श्याम भक्त आलूसिंह जी इस बगीची के फूलों से बाबा श्याम का श्रृंगार किया करते थे.
मंदिर के प्रमुख त्यौहार में फाल्गुन मेला सबसे बड़ा है. पाँच दिनों तक चलने वाला यह मेला फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर द्वादशी (बारस) तक चलता है. एकादशी को मेले का मुख्य दिन होता है.
मेले के समय लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम का निशान लेकर नाचते गाते खाटूश्यामजी के दर्शन करने आते हैं. मेले में आने वाले कई श्रद्धालु होली तक खाटू नगरी में रुकते हैं और होली के दिन बाबा श्याम के दरबार में रंगों का त्यौहार मनाने के पश्चात अपने घर प्रस्थान करते हैं.
Khatu shyam janmotsav or birthday
अन्य त्योहारों में कार्तिक माह की एकादशी को बाबा श्याम के जन्मोत्सव सहित कृष्ण जन्माष्टमी, होली, बसंत पंचमी आदि भी धूमधाम से मनाए जाते हैं. मंदिर के शिखर पर झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ का निशान साल भर लहराता रहता है. मंदिर पर सूरजगढ़ का निशान लहराने के पीछे एक किवदंती है.
इसके अनुसार काफी वर्ष पहले श्याम भक्तों में मंदिर पर अपना निशान चढाने की होड़ मच गई थी तब इस बात पर सहमति बनी कि जो श्याम भक्त मंदिर के बंद ताले को मोरछड़ी से खोलेगा, उसी का निशान शिखर पर चढ़ेगा.
Surajgarh nishan or nishan yatra
सूरजगढ़ से निशान लेकर आए श्याम भक्त मंगलाराम ने मंदिर के ताले को मोरछड़ी से खोल दिया. उस समय से ही मंदिर के शिखर पर सूरजगढ़ का निशान चढ़ता आ रहा है. वर्तमान में मंगलाराम के परिवार व सूरजगढ़ के लोग इस परम्परा को निभा रहे हैं.
बर्बरीक के खाटूश्यामजी के नाम से पूजे जाने के पीछे एक कथा है. इस कथा के अनुसार बर्बरीक पांडू पुत्र महाबली भीम के पौत्र थे. इनके पिता का नाम घटोत्कच एवं माता का नाम कामकंटका (कामकटंककटा, मोरवी, अहिलावती) था.
उन्होंने वाल्मीकि की तपस्या करके उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे. हारने वाले पक्ष की सहायता करने के उद्देश्य से नीले घोड़े पर सवार होकर ये कुरुक्षेत्र के युद्ध में भाग लेने के लिए आए.
भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में एक तीर से पीपल के सभी पत्तों को छिदवाकर इनकी शक्तियों को परखा. बाद में दान स्वरुप इनका शीश मांग लिया. फाल्गुन माह की द्वादशी को बर्बरीक ने कृष्ण को अपने शीश का दान दे दिया.
Khatu shyam or barbareek story
कृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया. युद्ध समाप्ति के पश्चात बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में बहकर खाटू ग्राम में आ गया.
सत्रहवी शताब्दी में खट्टवांग राजा के काल में खाटू ग्राम में एक गाय के थनों से श्याम कुंड वाली जगह पर अपने आप दूध बहने की वजह से जब खुदाई की गई तो वहाँ बर्बरीक का शीश निकला.
राजा खट्टवांग ने 1720 ईस्वी (विक्रम संवत 1777) में बर्बरीक के शीश की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करवाई. बाद में बाबा श्याम के मंदिर की वजह से यह गाँव खाटूश्यामजी के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
Different names of khatu shyamji
बाबा श्याम को श्याम बाबा, तीन बाण धारी, नीले घोड़े का सवार, लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोर्वीनंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धणी, कलयुग का अवतार, दीनों का नाथ आदि नामों से भी पुकारा जाता है.
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Ramesh Sharma M Pharm, MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA, CHMS
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